🚭🍷दे दारू.. दे दारू..🍷🚭
🚭🍷दे दारू.. दे दारू..🍷🚭 ******************************** कइसे मय समझाव तोला, का होगे समारू.. सुत उठ के बड़े बिहनिया, दे दारू..दे दारू.. दूरगति तै कर डारे, कउनो नइ पतियाय, जेखर तीर म जाथस, तउने ह लतियाय, बड़हर मन के आगू-पाछू, तै घूमे रे समारू... सुत उठ के बड़े बिहनिया, दे दारू..दे दारू.. लोग-लइका के संसो नइये,मति तोर छरियागे, दारू बिन कछू सूझय नहीं, बुद्धि तोर हजागे, कुकूर कस पूछी हिलावत, घूमत हस समारू.. सुत उठ के बड़े बिहनिया, दे दारू.. दे दारू.. गाल ह तोर चपटगे... आँखी घलो खुसरगे, दिखत हावै हाड़ा-गोड़ा.. नर-कंकाल बनगे, तन म कउनौ बल नइये, काँपत हस समारू... सुत उठ के बड़े बिहनिया, दे दारू.. दे दारू.. ********************************** ✍केतन साहू "खेतिहर"✍ बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.) **********************************