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Showing posts from December, 2017

⚡🔪क्या माँ ऐसी होती है...⚡🔪

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अपने बागबाहरा अँचल में घटित एक ऐसी हृदयविदारक घटना, जिसमें एक माँ के द्वारा अपनी दो मासूम बच्चियों को चाकू से गोदकर मार डाला गया। एक ऐसी घटना जिसने माता-पिता के संबंधों पर सोचने को मजबूर कर दिया है। इस घटना से मानव समाज पर एक प्रश्न चिन्ह लग गया है। मां-बेटी के रिश्ते पर प्रश्नचिन्ह लग गया है। उन मासूम बच्चियों की आत्मा को नमन करते हुए, मेरी यह रचना उनको सादर समर्पित है... ⚡🔪क्या माँ ऐसी होती है...⚡🔪 ******************************* इक नन्ही परी पूछ रही, माँ से बार-बार, सीने मे क्युँ उतार दिये, तुमने माँ कटार, यह दृश्य देख नन्हीं परी,डरती घबराती है... क्या माँ ऐसी होती है....?....2, मैं फूल तेरे गोद की, महक घर-द्वार की, चाहत मेरी इतनी थी, तेरे दुलार की, देख माँ का वीभत्स रूप, रूह काँप जाती है... क्या माँ ऐसी होती है....?....2, तुम्हारा दिल दहला नहीं, ऐसे कुकर्म से, क्रूरता भी शर्मा गई, क्रूर.. दुष्कर्म से, खूनी तांडव को निहार, काली शर्माती है... क्या माँ ऐसी होती है....?....2, क्या प्यार सारे मिल गये, तुम्हें संसार के, बोलो अब क्या चैन मिला, हमको युँ मार के, म

गुरुवर तुम्हें प्रणाम....

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याद आज हम फिर करें, गुरु के शब्द महान। पुष्प-गुच्छ अर्पित करें, ले-लें उनका ज्ञान।। मानव के कल्याण को, दिया पंथ सतनाम। वंदन करतें आप का, गुरुवर तुम्हें प्रणाम।। सब जन एक समान हैं, ये प्यारा संदेश। जन-जन में प्रचलित हुआ,उनका यह उपदेश।। मानव जाति धन्य हुई, फैला ज्ञान प्रकाश। गुरुवर के सत ज्ञान से, हुआ द्वेष का नाश।। भेद-भाव सब दूर हो, मिटे मलिनता आज। प्रेम-प्यार से सब रहें, ऐसा हो आगाज।। आप सभी को गुरु घासीदास जयंती की              बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं....

चैन कहाँ दिन-रैन...

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अवसादों के दौर में, चैन कहाँ दिन-रैन। हम भी तो बेचैन हैं, वो भी है बेचैन।। आंदोलन की आग में, झुलस गये सम्बंध। जैसे तेज बहाव में, बिखरे हों तटबंध।। नारे सारे थम गये, बंद हुआ अब शोर। मायूसी सी छा गई, चला दमन का जोर।। जुल्म सितम जो ढा रहे, ये कैसी सरकार। शोषण के प्रतिकार का, छीन रही अधिकार।। किसे सुनाएँ क्या कहें, सब के सब हैं मौन। हम भी तो यह पूछते, हमें बताएँ कौन।।         केतन साहू "खेतिहर"    बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)        मो. नं.- 7049646478

🌸🌷 प्रेयसी 🌷🌸

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जब राह पर मुसाफिर ने, मंजिल से मांगा था सहारा... तब तुमने पलट कर देखना, न समझा गवाँरा... अब दीप हाथ लिए, दिखा रही हो राह प्रेयसी... अब तुम्हारे प्यार की, मुझको नहीं है, चाह प्रेयसी... रूप के द्वार पर, दामन बिछाया था कभी... तुम्हें अपने दिल का, खुदा बनाया था कभी... अब तुम्हारे प्यार की, मै पा चुका हूं थाह प्रेयसी... अब तुम्हारे प्यार की, मुझको नहीं है चाह प्रेयसी...