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Showing posts from September, 2017

💥🔥रावण दहन🔥💥

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श्री राम की गूँज उठी,फिर से जय-जयकार है... करने को रावण दहन, सब दल-बल तैयार है... दंभी दानव राज का, दुष्टों के साम्राज्य का, लूट-पाट जो कर रहे, माँ बहनों के लाज का, शोषण,भक्षण कर रहे, उन सबका प्रतिकार है.. श्री राम की गूँज उठी,फिर से जय-जयकार है... फैल रहा है छल कपट,अंधकार छाया विकट, विनाश हो अज्ञान का,ज्ञान दीप अब हो प्रगट, राख-खाक हो सभी, पल्लवित अहंकार है... श्री राम की गूँज उठी,फिर से जय-जयकार है... भाई-भाई में प्यार हो, सुखी सभी परिवार हो, दुष्ट-भाव का नाश हो, पवित्रता का वास हो... विजया-दशमी का पतित,पावन यह त्योहार है.. श्री राम की गूँज उठी,फिर से जय-जयकार है... श्री राम की गूँज उठी,फिर से जय-जयकार है... करने को रावण दहन,सब दल-बल तैयार है...          केतन साहू "खेतिहर"    बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)       मो. नं.- 7049646478

🐯 दुर्गा के नवरूप 🐯

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शुभारंभ नवरात्र का, जगमग है दरबार।  गूंज उठी चहुँ ओर है, माता का जयकार।। शक्ति स्वरूपा मात हैं, दुर्गा का अवतार। दयामयी शिव-शक्ति को, पूजे सब संसार।। नव दिन के नवरात्र में, माता के नव-रूप।  सौम्य शीतला है कहीं, रौद्र कालिका रूप।।  प्रथम शैलपुत्री जगत, माता का अवतार।  ब्रम्हचारिणी मात को, पूजें दूजे वार।। रूप चंद्रघण्टा धरें, तीजे दिवस प्रचण्ड।  कूष्मांडा चौथे दिवस, आदिशक्ति ब्रम्हाण्ड।। स्कंदमाता स्वरूप में, दिवस पंचमी मात। पालय पोषय पुत्रवत, जग-जननी साक्षात।। सष्ठम दिन कात्यायणी, कालरात्रि तिथि सात।  माँ गौरी तिथि अष्ठमी, शुभ्र ज्योतिमय मात।। सिद्धीदात्री तिथि नवम, करें कामना सिद्ध।  सफल मनोरथ सब करें, धन्य धान्य संमृद्ध।। तन मन से सेवा करें, धरें मात का ध्यान।  दया करें निज दास पर, हैं बालक नादान।।          केतन साहू "खेतिहर"    बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)       मो. नं.- 7049646478

हे भगवन! अब तो कहो..

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हे भगवन! अब तो कहो,              जिउँ मैं कैसे जिन्दगी... रोम-रोम अब जल रहा,                करुँ मैं कैसे बन्दगी... बिन बारिश सूखा पड़ा,               धरती बंजर हो गयी... लाउँ कहाँ से अन्न-जल,         अग्नि उदर की जल रही... देख भयावह दृश्य है,         व्याकुल सभी किसान हैं... कुदरत की निष्ठुर हुआ,                  देख सभी हैरान हैं... संकट आन पड़ी विकट,              धैर्य सभी का खो रहा... अब लद गया किसान भी,               भार सभी का ढो रहा... देख दशा "खेतिहर" की,                   रो-रो तुम्हें पुकारती... अँखिया भी अब है द्रवित,                    अंतर्मन चित्कारती... हे भगवन! अब तो कहो,                जिउँ मैं कैसे जिन्दगी... रोम-रोम अब जल रहा,                   करुँ मैं कैसे बन्दगी...            केतन साहू "खेतिहर"      बागबाहरा,महासमुंद, (छ.ग.)       Mo.no.- 7049646478

बाबा.. रे.. बाबा!!!

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     💥 बाबा...रे बाबा!...💥 ये कैसा अब दौर है, कैसा है ये वक्त। कैसे नीम-हकीम हैं, कैसे-कैसे भक्त।। चाहे आशा राम हो, या हो राम रहीम। ज्ञानी संत लिवास में, ये हैं कड़ुवे नीम।। आडंबर सब रच रहे, करने भोग विलास। फूटी गगरी पाप की, हुआ हास परिहास।। आस्था की सब आड़ में, फैलाया व्यापार। धर्म सिसकता रह गया, पाखंडी दरबार।। भेष बदल कर आ रहे, करने को उपभोग। ताम-झाम सब देख के, उलझ रहे हैं लोग।। भक्तों की भी आज कल, बदल गई है सोच। ज्ञानी संत फकीर घर, जाने में संकोच।।           केतन साहू "खेतिहर"      बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)        मो. नं.- 7049646478

शिक्षक नहीं शिक्षाकर्मी हूँ...

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शिक्षक क्रांति दिवस  जिला महासमुंद में धरना व रैली प्रदर्शन पर, आक्रोश व्यक्त करती मेरी कुछ पंक्तियाँ... शिक्षक नहीं शिक्षाकर्मी हूँ,                सम्मान कहाँ से पाऊँ... पल-पल जो अपमान मिला है,                क्यों ना उन्हें बतलाऊँ... दुनिया उपहास उड़ाती है,      हड़ताली शिक्षक बतलाती है... शासन के सारे प्यादे भी,              दोषी हमको ठहराती है... उपहास उड़ाने वालों को,                अब कैसे मै समझाऊँ... शिक्षक नहीं शिक्षाकर्मी हूँ,                 सम्मान कहाँ से पाऊँ... कुछ भी बातें करनें वाले,           गलती हम पर मढ़नें वाले... अहसास तुम्हें कब होता है,         जब अपना दिल भी रोता है... दिल मे चुभती इन बातों से,                  मर्यादा भूल ना जाऊँ... शिक्षक नहीं शिक्षाकर्मी हूँ,                  सम्मान कहाँ से पाऊँ... कर्तव्य है जो शिक्षक का,                काम वही सब करतें हैं... विद्यार्थी का हो स्तर ऊँचा,             हर संभव प्रयास करतें हैं... आरोप लगाती दुनिया को,             क्या सीना चिर दिखलाऊँ... शिक्षक नहीं शिक्षाकर्मी हूँ,      

वंदना प्राथमिक गुरुजन की...

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वंदना प्राथमिक गुरुजन की। आओ जाने उनके मन की।। आकर के उनकी सुधि लेवें। ध्यान जरा उनकी करि लेवें।। नव-निहाल जो बच्चे आते। पकड़-पकड़ के कलम थमाते।। अचरज हमको कर जातें हैं। पढ़ना लिखना सिखलातें हैं।। जल थल नभ जीव जंतु सारे।। नील गगन के चाँद सितारे।। फूल चमन के प्यारे प्यारे।। स्वर व्यंजन भी गिनती सारे। छोटे और बड़े वर्णों का। रहन-सहन के गुण धर्मों का।। परिचय हमको करवातें है। जानें क्या-क्या सिखलातें हैं। जब बच्चे उबनें लगतें हैं। वे हँसते और हँसातें हैं।। हँसी-ठिठोली करते-रहते। सबका मन बहलाते रहते।। हँसकर खेल हमें करवाते। हम सब पर वे प्यार लुटाते।। नवाचार अपनातें रहते। हमको बोध कराते रहते।।। मजबूत नींव रखनें वाले। कच्चे मटके गढ़नें वाले।। धूल उड़ाते तूफानों से। कभी नहीं घबरानें वाले।। कोई उन पर जब हँसता है। उनका उपहास उड़ाता है।। दिल उनका छलनी होता है। जब छोटा समझा जाता है।। कुछ भी बातें करनें वाले। गलती उन पर मढ़नें वाले।। अहसास तुम्हें कब होता है। जब उनका दिल भी रोता है।। सम्मान नहीं कर सकते तो, उनका ना तुम अपमान करो। हम सब की गरिमा बनी रहे