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Showing posts from June, 2017

☀कोई और नहीं किसान हैं...☀

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ना अपना कोई राज-भवन। ना ही कोई  जमींन-दारी ।। छोटा अपना  गाँव-गली है। छोटी अपनी  खेती-बाड़ी।।           ना  तो  कोई  राज-सिहासन।           ना मस्तक पर सजा ताज है।।           हम तो अपने दिल के  राजा।           उस पर ही हमारा  राज  है।। ना  मंत्री  ना  संत्री  अपने। ना  जगमगाती  दरबार है।। बारिश  की  बुंदे पड़ती तो। अश्रु-धार बहाती दीवार है।।            ना तन पर  रेशमी वस्त्र है।            ना ही  कोई  ताम-झाम है।।            खेतों में कटते  दिन अपने।            कब मिलता हमें विश्राम है।। ना तो कोई गाड़ी  मोटर। ना  सेवक  पहरेदारी  है।। दौड़-भाग लाना ले जाना। सब अपनी जिम्मेदारी है।।             ना तो कोई शानों-शौकत।             ना ही कोई खास-बात है।।             छोटे-छोटे   सपनें   बुनते।             अपने कटते दिनों-रात है।। ना  हमको इनकी चाहत  है। ना ही हम तनिक नाराज हैं।। नव-युग  के  हम नये  नवेले। नव-युग के नव्य आगाज  है।।            खेती   अपनी   जिम्मेदारी।            इसमें  ही  हमारी जान  है।।            अब बोलो क्या पहचान गये।            

विनती सुन लो अब शर्मा जी...

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 📢विनती  सुन लो...📢 विनती सुन लो अब शर्मा जी। तुम जरा उतारो चश्मा जी।। फरियाद तुम्हें सुना  रहें  हैं। पीड़ा  अपनी  बता  रहें  हैं।। खिदमत करते कम वेतन में। कभी-कभी मिलते महिनें में।। हालत  सबकी जान  रहें  हैं। फिर भी क्यों अनजान बनें हैं।। मिडिया मजाक बना रही है। उपहास देख उड़ा  रही  है।। क्यों हमारी  नहीं  सुनतें  हैं। चुप हो क्यों नहीं बोलतें हैं।। क्या तरकस में अब तीर नहीं। बोलो भी क्या तुम वीर नहीं।। तुमसे  आश  लगा  बैठें  हैं। बोलो  क्यों   ऐंठे  बैठें   हैं।। आओ रण में अब कूच  करो। तुम भी अपनी ललकार भरो।। अब तुम ना देर लगाओ जी। हुंकार भरो अब  शर्मा  जी।। विनती सुन लो अब शर्मा जी... तुम जरा उतारो चश्मा जी...        केतन साहू "खेतिहर"    बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)    मो. नं.- 7049646478

मेरे बारे में...

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सम्माननीय,                  पाठक वृंद,                  सादर नमन... आज मैं अपने बारे में कुछ बातें साझा करने जा रहा हूँ। मेरी जन्मस्थली ग्राम सिवनी कलाँ, वि.ख.- कुरुद, जिला-धमतरी (छ.ग.) है। मैं एक सामान्य कृषक परिवार से हूँ। मेरे पिताजी का नाम श्री पंचराम साहू व दादा जी का नाम स्व. श्री फूलजी साहू है। मैनें उच्च प्राथमिक तक की पढ़ाई अपने गृह ग्राम सिवनी कलाँ से की फिर हायर सेकंडरी स्कूल तक की पढ़ाई समीपस्थ ग्राम सिर्री से प्राप्त की। हायर सेकंडरी तक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद मैनें गोवर्मेंट पालिटेक्निक कालेज खिरसाडोह छिंदवाड़ा से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा हासिल किया। खिरसाडोह हास्टल मे बिताये हुए तीन वर्ष मेरे जीवन के यादगार पलों में से एक है।               इसके बाद मेरे जीवन में एक नया मोड़ आया। सन् 1996 मे मेरे पिताजी ने ग्राम भालुचुवाँ, बागबाहरा, जिला-महासमुंद मे लगभग 40 एकड़ जमीन खरीदी और हमें पूरे परिवार सहित जिनमें मेरी माँ व पिताजी के अलावा दो छोटे भाई सामिल थे, अपनी जन्मस्थली व मैदानी परिवेश को छोड़कर एक अनजाने वन्य परिवेश मे आना पड़ा। शुरुआती वर्ष हमारे

☀बचपना☀

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   👶☀बचपना☀👶 रुक जाना हर एक मोड़ पर,                     नादानी है ये बच्चों की। नादानी करते-करते ही,              बीते ना हर पल जीवन की।। नादानी में ही तो बच्चें,               सब हरकतें किया करतें हैं। गर्म दूध को पीकर अपना,             मुँह ही जला लिया करतें हैं।। आतुरता इतनी ठीक नहीं,                  थोड़ी ठंडी आहें भर लो। व्याकुलता इतनी किस कारण,              पूछो परखो मंथन कर लो।। पूछ-परख कर तुम काम करो,           जग में अपना कुछ नाम करो। मात-पिता के अरमानों को,                 ऐसे ना तुम बदनाम करो।। अपनी खूबी मासुमियत को,                  क्यों ऐसे जाया करते हो। अनुपम अनमोल खजाने को,              क्यों व्यर्थ गँवाया करते हो।। पड़ाव पर मत उलझो प्यारे,           मंजिल की ही तुम ध्यान धरो। लक्ष्य तुम्हारा अब दूर नहीं,              तुम राम-बाण संधान करो।। छोटा अपना अरमान नहीं,                 ऊँची सोच रखा करते हैं। अब हम ना कोई बच्चे हैं,                 जो कंचों में खुश रहतें हैं।।             ✍ केतन साहू "खेतिहर"✍            

सुकमा नक्सली हमला...

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💥सुकमा नक्सली हमला💥 फिर से रंग गयी है धरती, नक्सल की खूनी होली से।। घात लगाकर बैठे थे जो, उन नक्सलियों की गोली से।। लाश उठी है जाबाजों की, देखो सुकमा की घाटी से।। चीख उठी है माँ बहनों की, तड़फती बिलखती छाती से।। बहुत हुआ यह खूनी तांडव, अब इनको भी मार गिराओ। तांडव मचा रहे दैत्यों को, अब तुम भी तो धूल चटाओ।। तुम भी मारो हत्यारों को। उन छुपे हुए गद्दारो को।। अब जो भी इनके पोषक है। वे मानवता के शोषक है।। करने को नक्सल उन्मूलन, जो अरबों रुपये पातें हैं।। वो बोले अब इन कुत्तों को, चुन-चुन क्यों नहीं मारतें हैं? देखो तो सरकारें कितनी, सत्ता के मद में अब चुर है।। बेबस हो जाती है जनता, जानें क्यों इतनी मजबुर है।। तोड़ मजबुरी की जंजीरें, अब तो बाहर आना होगा।। अब जनता को आगे बढ़कर, इनको सबक सिखाना होगा।। अब तो हाथों में हाथ लिए, सबको मिलकर चलना होगा।। अंधेरी गलियों पर जैसे, दीपक बनकर जलना होगा।।       ✍ केतन साहू "खेतिहर" ✍       बागबाहरा, महासमुंद(छ.ग.)

☀एक किसान☀

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💥 तांडव नृत्य💥

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अपने पास न तरकस है, न तीर है, न कमान है, सिर्फ एक जूबान है... उसे भी लोग चलाने नहीं देते... घर में श्री मती कहती है, चुप रहो... बाहर दुनिया कहती है, चुप रहो... ऐसे में हम करें तो क्या करें...? जी करता है, किसी पर्वत की, चोंटी पर चढ़ जायें... और भगवान शिव शंकर की तरह, क्यों न तांडव नृत्य दोहरायें...? 😜😀😜😀😜😀😜😀😜😀

🍷☀नशा☀🍷

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कृषक भाई आंदोलित है..

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धरती से अन्न उगाने वाले, हम सबकी क्षुधा मिटाने वाले, ना जानें इतना क्यों क्रोधित है? देख कृषक भाई आंदोलित है.... वसुंधरा को महकाने वाले, जीवन गीत गुन-गुनाने वाले, अब सोचें इतना क्यों शोषित है? देख कृषक भाई आंदोलित है... अपना पसीना बहाने वाले, धरती की प्यास बुझाने वाले, बताओ भी इतना क्यों तृषित है? देख कृषक भाई आंदोलित है... वे भोले-भाले सीधे-सच्चे, भूखे,बेघर क्यों उनके बच्चे? होते नित छलावे से छलित है, देख कृषक भाई आंदोलित है... जो अपनी सत्ता के खातिर ही, उनको भांति-भांति ललचातें हैं, अब वें बोले क्यों व्यर्थ-व्यथित हैं? देख कृषक भाई आंदोलित है... झूठी, फरेबी राज-सत्ता को, मौका परस्त राज-नेतृत्व को, अब खत्म करने को ललायित है, देख कृषक भाई आंदोलित है.... देख दयनीय दशा कृषक जन की, कुछ सुलगते प्रश्न उनके मन की, कलम"खेतिहर"की आज द्रवित है, देख कृषक भाई आंदोलित है... ✍  केतन साहू "खेतिहर" ✍ बागबाहरा, महासमुंद(छ.ग.) Mo.no. 7049646478