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Showing posts from August, 2017

उनसे ही रूठे रहतें हैं...

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🌸उनसे ही रूठे रहतें हैं...🌸 जिनके खातिर हम जीतें हैं, जिनके खातिर हम मरते हैं, ना जाने फिर क्या होता है, उनसे ही रूठे रहतें हैं... जिस गोदी में हम खेलें हैं जिस आँचल से हम लिपटें हैं, थोड़े से हम क्या बड़े हुए, ख्यालात पुराने लगतें हैं... जिस आँगन बचपन बीतें हैं जिन गलियों में दिन गुजरें हैं, ऐसी हवा लगी शहरों की, पुराने जमानें लगतें हैं... गाँवों की वो मस्ती टोली, खेले कूदे थे हम जोली, ऐसे उलझे हम अपने मे, सारे अनजानें लगतें हैं... गाँवों के वो बाग-बगीचे, पानी भर-भर हमनें सींचे, जब याद पुरानी आती है, अखियाँ आँसू झलकाती है... जीवन पथ पर जब बढ़ते हैं, पीछे क्या-क्या हम खोतें हैं, आज सुनाने बैठें तो सब, किस्से-कहानियाँ लगतें हैं... जिनके खातिर हम जीतें हैं, जिनके खातिर हम मरते हैं, ना जाने फिर क्या होता है, उनसे ही रूठे रहतें हैं...             केतन साहू "खेतिहर"       बागबाहरा, महासमुंद(छ.ग.)       Mo.no.- 7049646478

श्री गणेशाय नमः....

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🌸श्री गणेशाय नमः🌸 शुक्ल चतुर्थी आ गई, भादो पावन मास। श्री गणेश विराज रहे, छाया नव-उल्लास।। गौरी  के वे  पूत  हैं,  महादेव  के  लाल। थाल सजाएं दीप लें, पुष्प गुच्छ गलमाल।। करें आरती  देव की, गाएं  मंगल  गान। तन मन से सेवा करें, धरें देव का ध्यान।। मंगल  मूरति  देव हैं,  प्रथम  पूज्य  भगवान। आओ हम मिलकर करें,गणपति का गुणगान।। गणपति गणनायक कहें, लंबोदर गणराज। विघ्न विनाशक देव हैं, पूरे  करते काज।। दरिद्रता  दुख दूर  हो, धन  दौलत  भरपूर। दया- दृष्टि जिन पर करें, कष्ट हरे सब दूर।। "खेतिहर" भक्ति-भाव से, धरो देव का ध्यान। कृपा करें निज दास पर, कृपा सिंधु भगवान।।           ✍ केतन साहू "खेतिहर" ✍           बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)             मो.नं.- 7049646478

अगस्त क्रांति का आगाज...

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🔥अगस्त क्रांति का आगाज🔥 आओ रण में अब कूच करें... हम भी अपनी ललकार भरे.. बज उठा देख रण-भेरी है, चलने में अब क्यों देरी है? इक दूजे को कोस रहें हैं, खुद ही हम निर्दोष बनें हैं। क्या हममें कुछ दोष नहीं है शासन के प्रति रोष नहीं है। छोड़ो आपस की बातों को, आओ हिलमिल जयघोष करें। मातृ संगठन ललकार रहा, हम भी अपनी हुंकार भरें।। राह हमारी आसान नहीं, मुश्किल राहों पर चलना है। किसी एक की अब बात नहीं, हम सबको मिलकर लड़ना है।। देखो तो सरकारें कितनी, सत्ता के मद में अब चुर है।। बेबस हो जाती है जनता, जानें क्यों इतनी मजबुर है।। तोड़ मजबुरी की जंजीरें, अब तो बाहर आना होगा।। अब हमको ही आगे बढ़कर, इनको सबक सिखाना होगा।। अब तो हाथों में हाथ लिए, सबको मिलकर चलना होगा।। अंधेरी गलियों पर जैसे, दीपक बनकर जलना होगा।।     केतन साहू "खेतिहर" बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.) Mo.no. 7049646478

अलबेली सी नार...

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सावन का मद मास है, धरती का श्रृंगार। ओढ़ चुनर जैसीं लगे, अलबेली सी नार।। अलबेली उस नार की, कैसे करूँ बखान। कई पतंगे दीप पर, होते हों कुर्बान।। पीत पात सब झड़ गये, हरा भरा उद्यान। मानों कोई अप्सरा, पहनी नव परिधान। पुष्प कली सब खिल गई, भौंरे करते गान। गाल गुलाबी होंठ पर, मंद मंद मुस्कान।। सर-सर-सर बहती पवन, गाती मानों गीत। कल-कल-कल करती नदी, सुना रही संगीत।। इधर-उधर चहुँ ओर है, बलखाती बरसात। घुमड़-घुमड़ कर मेघ भी, बढ़ा रहे जज्बात।। बारिश का मौसम प्रिये, मस्त सुहानी रात। आओ हम मिलकर करें, प्रिये प्रीत की बात।।           केतन साहू "खेतिहर"      बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)        मो. नं.- 7049646478