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Showing posts from July, 2017

बदल रहा है देश...

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नवयुग का आरंभ है, नवयुग  का  आगाज। श्री गणेश अब हो रहा, दीप जलाओ आज।। मोदी जी  के  राज  में,  भ्रष्टाचारी  पस्त। उजड़ रहा है घोंसला, समेट ने में व्यस्त।। लुट जाती जागीर भी, गर हो पूत कपूत। दृष्टि-पात निज नेत्र से, है प्रत्यक्ष सबूत।। तेजस्वी  के  नाम से, लालू  जी  मजबूर। छूटी सत्ता हाथ से, चली गयी अति दूर।। देख सपा परिवार में, कुलभूषण अखिलेश। उत्तर प्रदेश छिन गया,  देख  रहा  है  देश।। राहुल के ही नाम से, अस्त-व्यस्त कांग्रेस। मची हुई है खलबली, मचा हुआ है क्लेश।। गौर करो इस दौर पर, बदल रहा परिवेश। बदल रहा परिदृश्य है, बदल रहा है देश।।               केतन साहू "खेतिहर"          बागबाहरा,महासमुंद, (छ.ग.)          Mo.no.- 7049646478

प्राथमिक स्कूल का मैं शिक्षक...

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प्राथमिक स्कूल का मैं शिक्षक,                       वर्ग तीन कहलाता हूँ... नव प्रवेशित बच्चों को,                "अ"अनार-आम पढ़ाता हूँ... शासन के आदेशों का,                 अक्षरशः पालन करता हूँ... एक-एक अक्षर सिखाने हेतु,                  कई-कई बार दोहराता हूँ... प्राथमिक स्कूल का मैं शिक्षक,                      वर्ग तीन कहलाता हूँ... मैं कहता हूँ अनार के "अ",                बच्चे कहते आम के "आ"... मैं कहता हूँ इमली के "इ",                   बच्चे कहते ईख के "ई"... छोटे और बड़े वर्णों का,                     भेद उन्हें समझाता हूँ... प्राथमिक स्कूल का मैं शिक्षक,                      वर्ग तीन कहलाता हूँ... जब बच्चें ऊबने लगतें हैं,                  मैं हँसता औऱ हँसाता हूँ... बच्चों का मन बहलानें,                  हँसी मजाक करवाता हूँ... हँसी मजाक करते करते,               खुद "मजाक" बन जाता हूँ... प्राथमिक स्कूल का मैं शिक्षक,                       वर्ग तीन कहलाता हूँ... बड़े-बड़े अधिकारी गण,  

अजीब दुनियाँ...

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तुम्हारी दुनियाँ भी, कितनी अजीब है... ऐ मेरे मालिक! हम जब रोतें हैं, तो दुनियाँ हम पे, खूब ठहाकें लगातीं हैं... हम जब हँसतें हैं, तो दुनियाँ हमारी हँसी पे, जल-भुन जातीं हैं... शायद! तुमनें हमारे लिए, दुनियाँ ही नहीं बनाई... जो मिलते वो बिछड़ जातें हैं, ये कैसी तेरी खुदाई... शायद! तुम्हारी यही ख्वाहिश है, हमें कुछ भी ना मिले, तुम्हारी इस दुनियाँ से... अगर आप यही चाहतें हैं हमसे, तो हमारी भी जिद है आप से... तुम्हारी इस दुनियाँ से, कुछ भी नहीं माँगेंगे... खाली हाथ आयें हैं, खाली हाथ ही जायेंगे....                       केतन साहू "खेतिहर"                   बागबाहरा, महासमुंद(छ.ग.)                   Mo.no.- 7049646478

दर्द विदाई क्या होता है?

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दर्द-विदाई क्या होता है? कुछ दृश्य देख मैं आया हूँ... अपनी प्यारी बिटिया को कहींं दूर  छोड़  मै आया हूं... पापा की वो प्यारी गुड़िया, मम्मी की  राज दुलारी  है। प्यारी सी दो बिटिया अपनी, छोटी अपनी  फुलवारी है।। आज बगीचे के फूलों को, जी भर देख नहीं पाया हूँ... दर्द-विदाई क्या होता है? कुछ दृश्य देख मैं आया हूँ... मम्मी रोती बिलख-बिलख कर, नन्ही खुशी भी आज दुखी है। ज्यों के त्यों आहार पड़ें है, जाने  कब से वो भूखी है।। अपने भीतर के भावों को, मैं बमुश्किल रोक पाया हूँ... दर्द-विदाई क्या होता है? कुछ दृश्य देख मैं आया हूँ... जिनकी हँसती किलकारी से, गुंजित अपना घर आँगन था। सुन प्यारी-प्यारी बातों को, मन आनंदित हो जाता था।। महकती चहकती गुलशन को, आज अधिक विरान पाया हूँ.... दर्द-विदाई क्या होता है? कुछ दृश्य देख मैं आया हूँ... जहाँ रहो तुम प्यारी गुड़िया, सब खुशियाँ तुम्हारे पास हो।। नित्य-नयी  ऊँचाई  छू  लो, उड़ने को खुला आकाश हो।। फूलों से प्यारी बच्ची को, यही  दुआएं  दे आया हूँ.... दर्द-विदाई क्या होता है? कुछ दृश्य देख मैं आया हूँ...           केत

🌀 अंतर्व्यथा युवा धड़कन की... 🌀

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निकले थे कुछ कर दिखलाने। दुनियाँ को नव-पथ बतलाने।। पढ़-लिख कर कुछ नाम कमाने। जीवन   अपना  सफल  बनाने।। नींदें खोकर के रातों की। विद्या पायी कालेजों की।। हासिल की डिग्री-डिप्लोमा। करवाया   पंजीयन-नामा।। मौका मिल जाये छोटा सा। हमने बस इतना सोंचा था।। मिट जाती  अपनी  बेगारी। गर मिले नौकरी सरकारी।। हम बारम्बार किये अपील। बेगारी की लग गयी सील।। कैसे जीयें  हम  क्या खायें। पीड़ा अपनी किसे बतायें।। अब हालत  तुम्हारे पास है। दुनियाँ अपनी भी उदास है।। आ जाए  नव-हर्ष-उल्लास। प्रेमी-प्यारी की है तलास।। कभी सोचुँ  नेता बन जाऊँ। खुद खाऊँ बस मजे उड़ाऊँ।। कभी सोचुँ  खेतों में  जाऊँ। खेती कर "खेतिहर" कहाऊँ।। इक दिन की मैं क्या बतलाऊँ। समुचा देश  आज  पलटाऊँ।। बड़े  जोश  में   ऐसा   सोंचा। अफसर को धर-पकड़ दबोचा।। उसने कहा अरे!मुर्ख नादान। तुझको थोड़ा भी नहीं ज्ञान।। मुझसे अनभिज्ञ अनजान है। मंत्री तक  जान-पहचान है।। दर्द तुम्हें  कैसे  दिखलायें। व्यथा तुम्हें कैसे बतलायें।। भूल  गया  मैं  सारी  बातें। दिल में ही सिमटी जज्बातें।। अंतर्व्यथा  युवा  ध