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🤣लॉकडाउन(समसामयिक व्यंग्य)🤣

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 🤣लॉकडाउन(समसामयिक व्यंग्य)🤣 ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ लॉकडाउन चल रहा है, घर से निकलना नहीं... जैसे-तैसे चटनी, पीस-पीस खाइए... चप्पे-चप्पे पर पुलिस यहां, डंडा लिए बैठ रहे... मुफ्त का मसाज,पिछवाड़े पर कराइए... पता करो किस कारण, कोरोना कुपित हुआ... थाली-माली चम्मच कुछ तो बजाइए... आप के खातिर हमने, दारु भट्टी खोल दिए... मनचाहा ब्रांड घर बैठे ही मंगाइए... कमी किसी चीज की, होने हम देंगे नहीं... क्या चाहिए बस खुल के बताइए... कोरोना के कारण अब, जीना दुश्वार हुआ... सब मिलकर इसे, देश से भगाइए... ~~~~~~~~~~~~~~~~~~ ✍© केतन साहू "खेतिहर"✍️     बागबाहरा, महासमुंद (छग.) ~~~~~~~~~~~~~~~~~~

🍷मयशाला बनाम मयकशी🍷

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     🍷मयशाला बनाम मयकशी🍷 ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ मापनी-- 212  212  222  212 तर्ज-- हाल क्या है दिलों का न पूछो सनम, ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ ⚡⚡⚡⚡⚡⚡⚡⚡⚡⚡ खून हमने  तुम्हारा जी भर के  पिया । तू समझता रहा मैं तो खुल के जिया।। देख  तेरे  लिए ही  मयशाला खुला, यार तुमने पियाला भर-भर के पिया। जाम पे जाम यारों छलकाते रहे, और खाली खजाना ना होने दिया। तुम शराबी कहाते हो या बेवड़ा, पर हमें देवघर का दर्जा दे दिया। भक्त भगवान सा अनुपम नाता यहाँ, सब चढ़ाकर प्रसादी तुमने ले लिया। भक्त सारे तुम्हारे कायल हो गए, जाम छूटे नहीं तुमने वर ले लिया। तू जिए या मरे अब है किसको फिकर, मर गया मानकर श्रद्धांजलि दे दिया। दोष किस पर लगाएँ तेरी मौत का, जब हमीं शौंक से तुमको मरने दिया। देश हित मे दुकानें मय की चल रही, मौत देकर शराबी तमगा दे दिया। "खेतिहर" ये अकेले के बस में नहीं, लाश हमने उठाने कांधा दे दिया। ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः ✍© केतन साहू "खेतिहर"✍️     बागबाहरा, महासमुंद (छग.)       मो.नं.- 7049646478

🏚️लॉकडाउन🏚️

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चंचरी / विंवुध प्रिया छंद ****************************** 212  112  12 , 1  121  211  212                 🏚️लॉकडाउन🏚️ ******************************** हे! प्रिये सुन बात को, इतना कहा तुम मान लो। लॉकडाउन है अभी, घर में रहो बस ठान लो।। है निवेदन आप से, निकलो नहीं घर में रहो। कष्ट का यह दौर है, तकलीफ है हित में सहो।। भूल से मत भूलना, अफसोस ना करना पड़े। रोग से बचना तुम्हें, गर कष्ट भी सहना पड़े।। मौत से मत खेलना, गर प्यार है परिवार से। जान से कितने गए, इस काल कोविड वार से।। धैर्य से तुम काम लो, यह घोर संकट काल है। भीड़ है शमशान में, यह दृश्य तो विकराल है।। काल है विकराल है, यह कोहराम मचा रहा। लॉकडाउन शस्त्र है, यह तो जहान बचा रहा।। *******************************       ✍© केतन साहू "खेतिहर"✍️         बागबाहरा, महासमुंद (छग.)
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         🙏♥️~माँ~♥️🙏 ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः प्यार हम पर सदा माँ लुटाती रही। दर्द  पीती रही  मुस्कुराती रही । चैन की नींद में लाल तुम सो सको, थाप दे-दे तुम्हें माँ सुलाती रही। कष्ट क्या चीज है ये तुम्हें क्या पता, अश्क़ हँसते हुए माँ छुपाती रही। आँच तुम पर न आये विपत काल में, माँ बिलखती रही गिड़गिड़ाती रही। अन्न के चार दाने जुटा वो सके, भूख में प्यास में कर्म करती रही। तीर सारे ज़माने के खुद ही सहे, ढाल बनके तुम्हें माँ बचाती रही। हम सदा खुश रहें खिलखिलाते रहें, बस  यही  माँ  मुरादें  मनाती रही । "खेतिहर" भूलकर भी न भूलो इसे, फर्ज माँ तो सदा ही निभाती रही । ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः ✍©#केतन_साहू_"खेतिहर"✍️     बागबाहरा, महासमुंद (छग.)