चैन कहाँ दिन-रैन...
अवसादों के दौर में, चैन कहाँ दिन-रैन।
हम भी तो बेचैन हैं, वो भी है बेचैन।।
आंदोलन की आग में, झुलस गये सम्बंध।
जैसे तेज बहाव में, बिखरे हों तटबंध।।
नारे सारे थम गये, बंद हुआ अब शोर।
मायूसी सी छा गई, चला दमन का जोर।।
जुल्म सितम जो ढा रहे, ये कैसी सरकार।
शोषण के प्रतिकार का, छीन रही अधिकार।।
किसे सुनाएँ क्या कहें, सब के सब हैं मौन।
हम भी तो यह पूछते, हमें बताएँ कौन।।
केतन साहू "खेतिहर"
बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)
मो. नं.- 7049646478
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