♥ बीती बात बिसार दें...♥
♥ बीती बात बिसार दें...♥
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कल-तक मीठे बोल थे,आज नहीं वो बात।
देखें तो मुँह फेर लें, ऐसे हैं हालात।।
जाने कैसे बढ़ गई, बात-बात में बात।
दिखलानें हमको लगी,वो अपनी औकात।।
अग्नि क्रोध की जल उठी, झुलस गये सम्बंध।
मानों तेज बहाव में, बिखरे हों तटबंध।।
हम भी तो हम ही रहे, वही पुराना रोष।
आओ फिर कर लें सुलह, बन जायें निर्दोष।।
कब तक हम ढोते रहें, वही पुरानी बात।
बीती बात बिसार दें, करें नई शुरुआत।।
✍केतन साहू "खेतिहर"✍
बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)
Ketansahu77.blogspot.com
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