कुंडलियां छंद_ 🔥बाबा रे! बाबा🔥
🔥बाबा रे! बाबा🔥
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बाबा है बस नाम के, करते भोग विलास।
फूटी गगरी पाप की, हुआ हास-परिहास।।
हुआ हास-परिहास, थूँकती दुनिया सारी।
पाखंडी दरबार, लुटी अबला बेचारी।
जाते थे दरबार, समझ कर कांशी काबा।
ढोंगी का बाजार, सजा बाबा रे! बाबा।।
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केतन साहू "खेतिहर"
बागबाहरा,महासमुंद, (छ.ग.)
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