💦 शीत लहर 💦
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भीतर तो सिहरन है तन में,
बाहर बारिश बरस रही है।
वृष्टि-सृष्टि दोनों ही मिलकर,
महि अम्बर को सता रही है।।
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धरती अम्बर सिमट गए हैं,
इक-दूजे से लिपट गए हैं ।
बदली बनी हुई है चादर,
मानों दोनों ओढ़ लिए हैं।।
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जीव-जंतु सब काँप रहे हैं,
कठिन समय को भाँप रहे हैं।
शीत लहर सी हवा चली है,
अग्नि सुहानी ताप रहे हैं ।।
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✒केतन साहू "खेतिहर"✒
बागबाहरा, महासमुंद(छग.)
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