उनसे ही रूठे रहतें हैं...
🌸उनसे ही रूठे रहतें हैं...🌸
जिनके खातिर हम जीतें हैं,
जिनके खातिर हम मरते हैं,
ना जाने फिर क्या होता है,
उनसे ही रूठे रहतें हैं...
जिस गोदी में हम खेलें हैं
जिस आँचल से हम लिपटें हैं,
थोड़े से हम क्या बड़े हुए,
ख्यालात पुराने लगतें हैं...
जिस आँगन बचपन बीतें हैं
जिन गलियों में दिन गुजरें हैं,
ऐसी हवा लगी शहरों की,
पुराने जमानें लगतें हैं...
गाँवों की वो मस्ती टोली,
खेले कूदे थे हम जोली,
ऐसे उलझे हम अपने मे,
सारे अनजानें लगतें हैं...
गाँवों के वो बाग-बगीचे,
पानी भर-भर हमनें सींचे,
जब याद पुरानी आती है,
अखियाँ आँसू झलकाती है...
जीवन पथ पर जब बढ़ते हैं,
पीछे क्या-क्या हम खोतें हैं,
आज सुनाने बैठें तो सब,
किस्से-कहानियाँ लगतें हैं...
जिनके खातिर हम जीतें हैं,
जिनके खातिर हम मरते हैं,
ना जाने फिर क्या होता है,
उनसे ही रूठे रहतें हैं...
केतन साहू "खेतिहर"
बागबाहरा, महासमुंद(छ.ग.)
Mo.no.- 7049646478
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