अलबेली सी नार...
सावन का मद मास है, धरती का श्रृंगार।
ओढ़ चुनर जैसीं लगे, अलबेली सी नार।।
अलबेली उस नार की, कैसे करूँ बखान।
कई पतंगे दीप पर, होते हों कुर्बान।।
पीत पात सब झड़ गये, हरा भरा उद्यान।
मानों कोई अप्सरा, पहनी नव परिधान।
पुष्प कली सब खिल गई, भौंरे करते गान।
गाल गुलाबी होंठ पर, मंद मंद मुस्कान।।
सर-सर-सर बहती पवन, गाती मानों गीत।
कल-कल-कल करती नदी, सुना रही संगीत।।
इधर-उधर चहुँ ओर है, बलखाती बरसात।
घुमड़-घुमड़ कर मेघ भी, बढ़ा रहे जज्बात।।
बारिश का मौसम प्रिये, मस्त सुहानी रात।
आओ हम मिलकर करें, प्रिये प्रीत की बात।।
केतन साहू "खेतिहर"
बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)
मो. नं.- 7049646478
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