कुंडली छंद - कर्नाटक का नाटक
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मानों नाटक चल रहा, भिन्न-भिन्न किरदार।
लड़ते हैं दिन-रात जो, लुटा रहे हैं प्यार।।
लुटा रहे हैं प्यार, आज सत्ता के खातिर।
बना लिए सरकार, देख नेता हैं सातिर।।
साँप-बिच्छु का मेल, खेल जहरीला जानो।
खाते हैं मिल बाँट, यहाँ मानों ना मानों।।
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केतन साहू "खेतिहर"
बागबाहरा,महासमुंद, (छ.ग.)
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