अजीब दुनियाँ...


तुम्हारी दुनियाँ भी,

कितनी अजीब है...

ऐ मेरे मालिक!


हम जब रोतें हैं,

तो दुनियाँ हम पे,

खूब ठहाकें लगातीं हैं...


हम जब हँसतें हैं,

तो दुनियाँ हमारी हँसी पे,

जल-भुन जातीं हैं...


शायद! तुमनें हमारे लिए,

दुनियाँ ही नहीं बनाई...


जो मिलते वो बिछड़ जातें हैं,

ये कैसी तेरी खुदाई...


शायद! तुम्हारी यही ख्वाहिश है,

हमें कुछ भी ना मिले,

तुम्हारी इस दुनियाँ से...


अगर आप यही चाहतें हैं हमसे,

तो हमारी भी जिद है आप से...


तुम्हारी इस दुनियाँ से,

कुछ भी नहीं माँगेंगे...


खाली हाथ आयें हैं,

खाली हाथ ही जायेंगे....


                      केतन साहू "खेतिहर"

                  बागबाहरा, महासमुंद(छ.ग.)

                  Mo.no.- 7049646478






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