हे भगवन! अब तो कहो..



हे भगवन! अब तो कहो,
             जिउँ मैं कैसे जिन्दगी...
रोम-रोम अब जल रहा,
               करुँ मैं कैसे बन्दगी...

बिन बारिश सूखा पड़ा,
              धरती बंजर हो गयी...
लाउँ कहाँ से अन्न-जल,
        अग्नि उदर की जल रही...

देख भयावह दृश्य है,
        व्याकुल सभी किसान हैं...
कुदरत की निष्ठुर हुआ,
                 देख सभी हैरान हैं...

संकट आन पड़ी विकट,
             धैर्य सभी का खो रहा...
अब लद गया किसान भी,
              भार सभी का ढो रहा...

देख दशा "खेतिहर" की,
                  रो-रो तुम्हें पुकारती...
अँखिया भी अब है द्रवित,
                   अंतर्मन चित्कारती...

हे भगवन! अब तो कहो,
               जिउँ मैं कैसे जिन्दगी...
रोम-रोम अब जल रहा,
                  करुँ मैं कैसे बन्दगी...

           केतन साहू "खेतिहर"
     बागबाहरा,महासमुंद, (छ.ग.)
      Mo.no.- 7049646478


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