⛈बरसो रे! अब मेघ..⛈


बरसो रे! अब मेघ....
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चिंता ग्रस्त किसान हैं, बिन बारिश बरसात।
धरती सूखी है पड़ी, बिगड़ रहे हालात।।
बिगड़ रहे हालात, घटा गम की अब छाई।
कहीं पड़े न अकाल, हो न जाए दुखदाई।।
बरसो रे! अब मेघ, मिले सबको निर्भयता।
बुझे धरा की प्यास, मिटे सबकी यह चिंता।।
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           केतन साहू "खेतिहर"
     बागबाहरा,महासमुंद, (छ.ग.)

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