मुक्तक..🐊.घड़ियाली आँसू..🐊
(1)
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झूठ था कहना तुम्हारा सच नही सब एक हैं,
खुल रहा है भेद सारा लग रहा सब फेंक हैं,
सच अगर लगता बुरा तो लगनी भी तो चाहिए,
बन गये सब शेख हैं बस अपना अपना देख हैं,
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(2)
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खुल रहा है भेद सारा सच कभी छुपता नहीं,
अब दिखावा मत करो अच्छा हमें लगता नहीं,
जश्न की गर बात है तो खुल के भी हँस दो जरा,
अश्रु अब घड़ियाल के अच्छा हमें लगता नहीं,
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✍ केतन साहू "खेतिहर" ✍
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