☀कोई और नहीं किसान हैं...☀
ना अपना कोई राज-भवन।
ना ही कोई जमींन-दारी ।।
छोटा अपना गाँव-गली है।
छोटी अपनी खेती-बाड़ी।।
ना तो कोई राज-सिहासन।
ना मस्तक पर सजा ताज है।।
हम तो अपने दिल के राजा।
उस पर ही हमारा राज है।।
ना मंत्री ना संत्री अपने।
ना जगमगाती दरबार है।।
बारिश की बुंदे पड़ती तो।
अश्रु-धार बहाती दीवार है।।
ना तन पर रेशमी वस्त्र है।
ना ही कोई ताम-झाम है।।
खेतों में कटते दिन अपने।
कब मिलता हमें विश्राम है।।
ना तो कोई गाड़ी मोटर।
ना सेवक पहरेदारी है।।
दौड़-भाग लाना ले जाना।
सब अपनी जिम्मेदारी है।।
ना तो कोई शानों-शौकत।
ना ही कोई खास-बात है।।
छोटे-छोटे सपनें बुनते।
अपने कटते दिनों-रात है।।
ना हमको इनकी चाहत है।
ना ही हम तनिक नाराज हैं।।
नव-युग के हम नये नवेले।
नव-युग के नव्य आगाज है।।
खेती अपनी जिम्मेदारी।
इसमें ही हमारी जान है।।
अब बोलो क्या पहचान गये।
कोई और नहीं किसान हैं।।
✍ केतन साहू "खेतिहर"✍
बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)
मो.नं.- 7049646478
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