सुकमा नक्सली हमला...
💥सुकमा नक्सली हमला💥
फिर से रंग गयी है धरती,
नक्सल की खूनी होली से।।
घात लगाकर बैठे थे जो,
उन नक्सलियों की गोली से।।
लाश उठी है जाबाजों की,
देखो सुकमा की घाटी से।।
चीख उठी है माँ बहनों की,
तड़फती बिलखती छाती से।।
बहुत हुआ यह खूनी तांडव,
अब इनको भी मार गिराओ।
तांडव मचा रहे दैत्यों को,
अब तुम भी तो धूल चटाओ।।
तुम भी मारो हत्यारों को।
उन छुपे हुए गद्दारो को।।
अब जो भी इनके पोषक है।
वे मानवता के शोषक है।।
करने को नक्सल उन्मूलन,
जो अरबों रुपये पातें हैं।।
वो बोले अब इन कुत्तों को,
चुन-चुन क्यों नहीं मारतें हैं?
देखो तो सरकारें कितनी,
सत्ता के मद में अब चुर है।।
बेबस हो जाती है जनता,
जानें क्यों इतनी मजबुर है।।
तोड़ मजबुरी की जंजीरें,
अब तो बाहर आना होगा।।
अब जनता को आगे बढ़कर,
इनको सबक सिखाना होगा।।
अब तो हाथों में हाथ लिए,
सबको मिलकर चलना होगा।।
अंधेरी गलियों पर जैसे,
दीपक बनकर जलना होगा।।
✍ केतन साहू "खेतिहर" ✍
बागबाहरा, महासमुंद(छ.ग.)
फिर से रंग गयी है धरती,
नक्सल की खूनी होली से।।
घात लगाकर बैठे थे जो,
उन नक्सलियों की गोली से।।
लाश उठी है जाबाजों की,
देखो सुकमा की घाटी से।।
चीख उठी है माँ बहनों की,
तड़फती बिलखती छाती से।।
बहुत हुआ यह खूनी तांडव,
अब इनको भी मार गिराओ।
तांडव मचा रहे दैत्यों को,
अब तुम भी तो धूल चटाओ।।
तुम भी मारो हत्यारों को।
उन छुपे हुए गद्दारो को।।
अब जो भी इनके पोषक है।
वे मानवता के शोषक है।।
करने को नक्सल उन्मूलन,
जो अरबों रुपये पातें हैं।।
वो बोले अब इन कुत्तों को,
चुन-चुन क्यों नहीं मारतें हैं?
देखो तो सरकारें कितनी,
सत्ता के मद में अब चुर है।।
बेबस हो जाती है जनता,
जानें क्यों इतनी मजबुर है।।
तोड़ मजबुरी की जंजीरें,
अब तो बाहर आना होगा।।
अब जनता को आगे बढ़कर,
इनको सबक सिखाना होगा।।
अब तो हाथों में हाथ लिए,
सबको मिलकर चलना होगा।।
अंधेरी गलियों पर जैसे,
दीपक बनकर जलना होगा।।
✍ केतन साहू "खेतिहर" ✍
बागबाहरा, महासमुंद(छ.ग.)
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