☀एक किसान☀
हम तो है बस एक किसान,
किसे सुनायें अपनी बात।
खेती हमारी पूजा है,
और किसानी अपनी जात।।
खून पसीना बहाते हैं,
उपजाते अन्न का दाना।
सोचतें बस इतना ही हम,
हो अपना भी आशियाना।।
पर यह तो एक सपना है,
हमारे वश की बात नहीं।
बद-किस्मत अन्नदाता को,
स्वप्न का भी अधिकार नहीं।।
लुट ले जाते हैं लुटेरे,
मुल्य कहीं भी मिलता नहीं।
चार-आने थमातें सारे,
जहाँ मे कहीं चलता नहीं।।
अटुट-श्रद्धा भक्ति-भाव से,
देवी को फल चढ़ातें हैं।
उस भेंट को भेष बदलकर,
शैतान लुट ले जातें हैं।।
कुकृत्य देखो उस दैत्य की,
कमाई सब खा जातें हैं।
प्रफुल्लित होकर बदले में,
नग्न-नृत्य दिखा जातें हैं।।
मैं पुछूँ ऊपर वाले से,
क्या यही हमारी नियति है।
क्या हमसे कोई चुक हुई,
कहो क्यों ऐसी दुर्गति है।।
✍ केतन साहू "खेतिहर" ✍
बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)
मो.नं.- 7049646478
किसे सुनायें अपनी बात।
खेती हमारी पूजा है,
और किसानी अपनी जात।।
खून पसीना बहाते हैं,
उपजाते अन्न का दाना।
सोचतें बस इतना ही हम,
हो अपना भी आशियाना।।
पर यह तो एक सपना है,
हमारे वश की बात नहीं।
बद-किस्मत अन्नदाता को,
स्वप्न का भी अधिकार नहीं।।
लुट ले जाते हैं लुटेरे,
मुल्य कहीं भी मिलता नहीं।
चार-आने थमातें सारे,
जहाँ मे कहीं चलता नहीं।।
अटुट-श्रद्धा भक्ति-भाव से,
देवी को फल चढ़ातें हैं।
उस भेंट को भेष बदलकर,
शैतान लुट ले जातें हैं।।
कुकृत्य देखो उस दैत्य की,
कमाई सब खा जातें हैं।
प्रफुल्लित होकर बदले में,
नग्न-नृत्य दिखा जातें हैं।।
मैं पुछूँ ऊपर वाले से,
क्या यही हमारी नियति है।
क्या हमसे कोई चुक हुई,
कहो क्यों ऐसी दुर्गति है।।
✍ केतन साहू "खेतिहर" ✍
बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)
मो.नं.- 7049646478
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