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Showing posts from 2017

⚡🔪क्या माँ ऐसी होती है...⚡🔪

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अपने बागबाहरा अँचल में घटित एक ऐसी हृदयविदारक घटना, जिसमें एक माँ के द्वारा अपनी दो मासूम बच्चियों को चाकू से गोदकर मार डाला गया। एक ऐसी घटना जिसने माता-पिता के संबंधों पर सोचने को मजबूर कर दिया है। इस घटना से मानव समाज पर एक प्रश्न चिन्ह लग गया है। मां-बेटी के रिश्ते पर प्रश्नचिन्ह लग गया है। उन मासूम बच्चियों की आत्मा को नमन करते हुए, मेरी यह रचना उनको सादर समर्पित है... ⚡🔪क्या माँ ऐसी होती है...⚡🔪 ******************************* इक नन्ही परी पूछ रही, माँ से बार-बार, सीने मे क्युँ उतार दिये, तुमने माँ कटार, यह दृश्य देख नन्हीं परी,डरती घबराती है... क्या माँ ऐसी होती है....?....2, मैं फूल तेरे गोद की, महक घर-द्वार की, चाहत मेरी इतनी थी, तेरे दुलार की, देख माँ का वीभत्स रूप, रूह काँप जाती है... क्या माँ ऐसी होती है....?....2, तुम्हारा दिल दहला नहीं, ऐसे कुकर्म से, क्रूरता भी शर्मा गई, क्रूर.. दुष्कर्म से, खूनी तांडव को निहार, काली शर्माती है... क्या माँ ऐसी होती है....?....2, क्या प्यार सारे मिल गये, तुम्हें संसार के, बोलो अब क्या चैन मिला, हमको युँ मार के, म

गुरुवर तुम्हें प्रणाम....

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याद आज हम फिर करें, गुरु के शब्द महान। पुष्प-गुच्छ अर्पित करें, ले-लें उनका ज्ञान।। मानव के कल्याण को, दिया पंथ सतनाम। वंदन करतें आप का, गुरुवर तुम्हें प्रणाम।। सब जन एक समान हैं, ये प्यारा संदेश। जन-जन में प्रचलित हुआ,उनका यह उपदेश।। मानव जाति धन्य हुई, फैला ज्ञान प्रकाश। गुरुवर के सत ज्ञान से, हुआ द्वेष का नाश।। भेद-भाव सब दूर हो, मिटे मलिनता आज। प्रेम-प्यार से सब रहें, ऐसा हो आगाज।। आप सभी को गुरु घासीदास जयंती की              बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं....

चैन कहाँ दिन-रैन...

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अवसादों के दौर में, चैन कहाँ दिन-रैन। हम भी तो बेचैन हैं, वो भी है बेचैन।। आंदोलन की आग में, झुलस गये सम्बंध। जैसे तेज बहाव में, बिखरे हों तटबंध।। नारे सारे थम गये, बंद हुआ अब शोर। मायूसी सी छा गई, चला दमन का जोर।। जुल्म सितम जो ढा रहे, ये कैसी सरकार। शोषण के प्रतिकार का, छीन रही अधिकार।। किसे सुनाएँ क्या कहें, सब के सब हैं मौन। हम भी तो यह पूछते, हमें बताएँ कौन।।         केतन साहू "खेतिहर"    बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)        मो. नं.- 7049646478

🌸🌷 प्रेयसी 🌷🌸

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जब राह पर मुसाफिर ने, मंजिल से मांगा था सहारा... तब तुमने पलट कर देखना, न समझा गवाँरा... अब दीप हाथ लिए, दिखा रही हो राह प्रेयसी... अब तुम्हारे प्यार की, मुझको नहीं है, चाह प्रेयसी... रूप के द्वार पर, दामन बिछाया था कभी... तुम्हें अपने दिल का, खुदा बनाया था कभी... अब तुम्हारे प्यार की, मै पा चुका हूं थाह प्रेयसी... अब तुम्हारे प्यार की, मुझको नहीं है चाह प्रेयसी...

शब्द सीढ़ी

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शब्द सीढ़ी- तिथि- 17 नवम्बर 2017 वार - शुक्रवार शब्द-शराब,नवाब,खराब,कबाब,हिसाब ********************************* नशा करो न #शराब का, कहना अब तो मान। तुच्छ नशे को छोड़कर, खुद को दो पहचान।। #नवाब सारे लुट गये, छले गये वे लोग। सुरा-सुंदरी का सदा, करते थे उपभोग।। इस तरह न #खराब करो, जीवन है अनमोल। हर पल दृश्य बदल रहा, अब तो आँखें खोल।। देख सको तो देख लो, नव-जीवन के ख्वाब। होना तो सब खाक है, हड्डी सहित #कबाब।। पाप-पुण्य दो बंध है, जीवन बहती धार। चलना तुम्हें #हिसाब से, जीवन का यह सार।।          केतन साहू "खेतिहर"    बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)        मो. नं.- 7049646478

आओ हिलमिल जयघोष करें....

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आओ हिलमिल जय घोष करें,                 हम भी अपनी हुंकार भरें... जब युद्ध महा भीषण  है तो,                हम खुद को भी तैयार करें... लक्ष्य बड़ा गर पाना है तो,                कर्म तुम्हें भी करना होगा... पग-पग बिछे हुए हैं कांटे,                 राह तुम्हें ही गढ़ना होगा... अब तो हाथों में हाथ लिए,           सबको मिलकर चलना होगा.... अंधेरी गलियों पर जैसे,             दीपक बनकर जलना होगा... पड़ाव पर मत उलझो प्यारे,           मंजिल की ही तुम ध्यान धरो... अब लक्ष्य तुम्हारा दूर नहीं,              तुम राम-बाण संधान करो... छोटा अपना अरमान नहीं,                 ऊँची सोच रखा करते हैं... अब हम ना कोई बच्चे हैं,                 जो कंचों में खुश रहते हैं...          केतन साहू "खेतिहर"    बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)        मो. नं.- 7049646478

🌸 गोवर्धन पूजा 🌸

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          🌸 गोवर्धन पूजा 🌸 शुक्लपक्ष की प्रतिपदा,कार्तिक पावन मास। गोवर्धन पूजन करें, कृष्णा पर विश्वास।। दमन इन्द्र के दंभ का, गोधन का सम्मान। मान बढ़ाया कृष्ण ने, लीलाधर भगवान।। पूजन खंडित जब हुआ, बढ़ा इन्द्र का कोप। बरस पड़े फिर मेघ भी, संकट विकट प्रकोप।। थर-थर-थर काँपन लगे, घबराये सब लोग। शरण पड़े गोपाल के, करनें को सहयोग।। देवराज के कृत्य से,  हुए कृष्ण जब तंग। उठा गिरी को देव ने, किया दंभ फिर भंग।। विनय किया तब इन्द्र ने, करनी निज स्वीकार। गूँज उठी चहुँ ओर फिर,गिरधर की जयकार।। धूम-धाम से फिर हुआ, अन्नकूट त्योहार। मुरलीधर सुन लो विनय, हो सबका उद्धार।।        आप सभी को गोवर्धन पूजा व दीपावली की असीम बधाई व शुभकामनाएं...           केतन साहू "खेतिहर"    बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)        मो. नं.- 7049646478

🌸 लक्ष्मी पूजन 🌸

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        🌸 माँ लक्ष्मी पूजन 🌸 दिवस अमावस की घड़ी,पवित्र कार्तिक मास। माँ लक्ष्मी पधार रहीं, छाया हर्षोल्लास।। गाँव-गली सब सज गये,चमक उठी चहुँ ओर। धूम मची त्योहार की, गूँज रही है शोर।। थाल सजाएं दीप लें, पुष्प गुच्छ गलमाल। माँ लक्ष्मी पूजन करें, बनें सभी खुशहाल।। करें आरती  मात की, गाएं  मंगल  गान। तन-मन से सुमिरन करें, धरें मात का ध्यान।। दरिद्रता  दुख दूर  हो, धन  दौलत  भरपूर। दया-दृष्टि जिन पर करें, कष्ट हरें सब दूर।। समृद्धता वैभव बढ़े, बढ़े मान सम्मान। आओ सब मिलकर करें, माता का गुणगान।। "खेतिहर" भक्ति-भाव से,धरो मात का ध्यान। कृपा करें निज दास पर, दे हमको वरदान।।          केतन साहू "खेतिहर"    बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)        मो. नं.- 7049646478

♥ किसका दिल मचला नहीं...♥

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♥ किसका दिल मचला नहीं... ♥ उपवन की खिलती कली पर,                कौन भला उलझा नही... जरा हमें भी तो बताओ,            किसका दिल मचला नहीं... यौवन की दहलीज पर जब,              नव-पथिक पग रखता है... रंग रूप माधुर्यता का,                  नशा उस पर चढ़ता है... प्रियतम की प्यारी अदा पर,                   होता कौन फिदा नहीं... जरा हमें भी तो बताओ,             किसका दिल मचला नहीं... चढ़ता रंग बहार का जब,                    हर कली मुस्काती है... खिलता गुल-गुलनार पर तो,                       तितली मंडराती है... पुष्प कली को क्या भ्रमर भी,                      चूम-चूम जाता नहीं... जरा हमें भी तो बताओ,              किसका दिल मचला नहीं... जवाँ-दिलों की हर तमन्ना,                         पूरी तो होती नहीं... माना सबको इस डगर पर,                  मंजिल तो मिलती नहीं... देख शमा पर क्या पतंगे,                जल-जलकर मरता नहीं... जरा हमें भी तो बताओ,              किसका दिल मचला नहीं...         केतन साहू "खेतिहर"    बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)        मो. नं.-

🌸 कल की बात 🌸

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🌹 कल की बात 🌹 ★★★★★★★★★ जो "आरजू" है दिल में तेरे, वो कर ले आज ही पूरी। कल का क्या भरोसा करते, रह जायें ना आश अधूरी।। कल की जो बात करेगा, वो कहाँ कुछ कर पाएगा। कल का क्या भरोसा करते, कल तो धोखा दे जाएगा।। कल की झूठी आस में बंदे, आज को क्यों खोता है। सपने अपने कब होंगे पूरे, सोच-सोच क्यों रोता है।। कल की चिंता छोड़ के बंदे, आज पर जरा ध्यान दें। आज लक्ष्य जो तेरे सामने, बस वही करने की ठान ले।। आज को तुमने सँवार लिया, कल तुम्हारे सँवर जाएंगे। आज को तुमने निखार लिया, कल तुम्हारे निखर जाएंगे।।          केतन साहू "खेतिहर"    बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)       मो. नं.- 7049646478

🌸 नारी 🌸

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नारी शीतल छाँव है, सदा लुटाती प्यार। प्रेम प्रीति प्रतिमूर्ति की, सदा करो सत्कार।। वंदनीय चरित्र सभी, पूजनीय हर रूप। माँ बहना बेटी कहूँ, या संगिनी स्वरूप।। नारी बिन सब हैं पुरुष, माँझी बिन पतवार। धार प्रवाहित हो कहाँ, कोउ न खेवनहार।। मात-पिता सब मिल करें, जिम्मेदारी पूर्ण। दुखी सभी खुशहाल हो, सपनें हो संपूर्ण।। प्रेम-प्यार से सब रहें, जीवन का यह सार। पवित्रता का वास हो, सुखमय सब संसार।।          केतन साहू "खेतिहर"    बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)       मो. नं.- 7049646478

💥🔥रावण दहन🔥💥

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श्री राम की गूँज उठी,फिर से जय-जयकार है... करने को रावण दहन, सब दल-बल तैयार है... दंभी दानव राज का, दुष्टों के साम्राज्य का, लूट-पाट जो कर रहे, माँ बहनों के लाज का, शोषण,भक्षण कर रहे, उन सबका प्रतिकार है.. श्री राम की गूँज उठी,फिर से जय-जयकार है... फैल रहा है छल कपट,अंधकार छाया विकट, विनाश हो अज्ञान का,ज्ञान दीप अब हो प्रगट, राख-खाक हो सभी, पल्लवित अहंकार है... श्री राम की गूँज उठी,फिर से जय-जयकार है... भाई-भाई में प्यार हो, सुखी सभी परिवार हो, दुष्ट-भाव का नाश हो, पवित्रता का वास हो... विजया-दशमी का पतित,पावन यह त्योहार है.. श्री राम की गूँज उठी,फिर से जय-जयकार है... श्री राम की गूँज उठी,फिर से जय-जयकार है... करने को रावण दहन,सब दल-बल तैयार है...          केतन साहू "खेतिहर"    बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)       मो. नं.- 7049646478

🐯 दुर्गा के नवरूप 🐯

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शुभारंभ नवरात्र का, जगमग है दरबार।  गूंज उठी चहुँ ओर है, माता का जयकार।। शक्ति स्वरूपा मात हैं, दुर्गा का अवतार। दयामयी शिव-शक्ति को, पूजे सब संसार।। नव दिन के नवरात्र में, माता के नव-रूप।  सौम्य शीतला है कहीं, रौद्र कालिका रूप।।  प्रथम शैलपुत्री जगत, माता का अवतार।  ब्रम्हचारिणी मात को, पूजें दूजे वार।। रूप चंद्रघण्टा धरें, तीजे दिवस प्रचण्ड।  कूष्मांडा चौथे दिवस, आदिशक्ति ब्रम्हाण्ड।। स्कंदमाता स्वरूप में, दिवस पंचमी मात। पालय पोषय पुत्रवत, जग-जननी साक्षात।। सष्ठम दिन कात्यायणी, कालरात्रि तिथि सात।  माँ गौरी तिथि अष्ठमी, शुभ्र ज्योतिमय मात।। सिद्धीदात्री तिथि नवम, करें कामना सिद्ध।  सफल मनोरथ सब करें, धन्य धान्य संमृद्ध।। तन मन से सेवा करें, धरें मात का ध्यान।  दया करें निज दास पर, हैं बालक नादान।।          केतन साहू "खेतिहर"    बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)       मो. नं.- 7049646478

हे भगवन! अब तो कहो..

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हे भगवन! अब तो कहो,              जिउँ मैं कैसे जिन्दगी... रोम-रोम अब जल रहा,                करुँ मैं कैसे बन्दगी... बिन बारिश सूखा पड़ा,               धरती बंजर हो गयी... लाउँ कहाँ से अन्न-जल,         अग्नि उदर की जल रही... देख भयावह दृश्य है,         व्याकुल सभी किसान हैं... कुदरत की निष्ठुर हुआ,                  देख सभी हैरान हैं... संकट आन पड़ी विकट,              धैर्य सभी का खो रहा... अब लद गया किसान भी,               भार सभी का ढो रहा... देख दशा "खेतिहर" की,                   रो-रो तुम्हें पुकारती... अँखिया भी अब है द्रवित,                    अंतर्मन चित्कारती... हे भगवन! अब तो कहो,                जिउँ मैं कैसे जिन्दगी... रोम-रोम अब जल रहा,                   करुँ मैं कैसे बन्दगी...            केतन साहू "खेतिहर"      बागबाहरा,महासमुंद, (छ.ग.)       Mo.no.- 7049646478

बाबा.. रे.. बाबा!!!

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     💥 बाबा...रे बाबा!...💥 ये कैसा अब दौर है, कैसा है ये वक्त। कैसे नीम-हकीम हैं, कैसे-कैसे भक्त।। चाहे आशा राम हो, या हो राम रहीम। ज्ञानी संत लिवास में, ये हैं कड़ुवे नीम।। आडंबर सब रच रहे, करने भोग विलास। फूटी गगरी पाप की, हुआ हास परिहास।। आस्था की सब आड़ में, फैलाया व्यापार। धर्म सिसकता रह गया, पाखंडी दरबार।। भेष बदल कर आ रहे, करने को उपभोग। ताम-झाम सब देख के, उलझ रहे हैं लोग।। भक्तों की भी आज कल, बदल गई है सोच। ज्ञानी संत फकीर घर, जाने में संकोच।।           केतन साहू "खेतिहर"      बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)        मो. नं.- 7049646478

शिक्षक नहीं शिक्षाकर्मी हूँ...

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शिक्षक क्रांति दिवस  जिला महासमुंद में धरना व रैली प्रदर्शन पर, आक्रोश व्यक्त करती मेरी कुछ पंक्तियाँ... शिक्षक नहीं शिक्षाकर्मी हूँ,                सम्मान कहाँ से पाऊँ... पल-पल जो अपमान मिला है,                क्यों ना उन्हें बतलाऊँ... दुनिया उपहास उड़ाती है,      हड़ताली शिक्षक बतलाती है... शासन के सारे प्यादे भी,              दोषी हमको ठहराती है... उपहास उड़ाने वालों को,                अब कैसे मै समझाऊँ... शिक्षक नहीं शिक्षाकर्मी हूँ,                 सम्मान कहाँ से पाऊँ... कुछ भी बातें करनें वाले,           गलती हम पर मढ़नें वाले... अहसास तुम्हें कब होता है,         जब अपना दिल भी रोता है... दिल मे चुभती इन बातों से,                  मर्यादा भूल ना जाऊँ... शिक्षक नहीं शिक्षाकर्मी हूँ,                  सम्मान कहाँ से पाऊँ... कर्तव्य है जो शिक्षक का,                काम वही सब करतें हैं... विद्यार्थी का हो स्तर ऊँचा,             हर संभव प्रयास करतें हैं... आरोप लगाती दुनिया को,             क्या सीना चिर दिखलाऊँ... शिक्षक नहीं शिक्षाकर्मी हूँ,      

वंदना प्राथमिक गुरुजन की...

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वंदना प्राथमिक गुरुजन की। आओ जाने उनके मन की।। आकर के उनकी सुधि लेवें। ध्यान जरा उनकी करि लेवें।। नव-निहाल जो बच्चे आते। पकड़-पकड़ के कलम थमाते।। अचरज हमको कर जातें हैं। पढ़ना लिखना सिखलातें हैं।। जल थल नभ जीव जंतु सारे।। नील गगन के चाँद सितारे।। फूल चमन के प्यारे प्यारे।। स्वर व्यंजन भी गिनती सारे। छोटे और बड़े वर्णों का। रहन-सहन के गुण धर्मों का।। परिचय हमको करवातें है। जानें क्या-क्या सिखलातें हैं। जब बच्चे उबनें लगतें हैं। वे हँसते और हँसातें हैं।। हँसी-ठिठोली करते-रहते। सबका मन बहलाते रहते।। हँसकर खेल हमें करवाते। हम सब पर वे प्यार लुटाते।। नवाचार अपनातें रहते। हमको बोध कराते रहते।।। मजबूत नींव रखनें वाले। कच्चे मटके गढ़नें वाले।। धूल उड़ाते तूफानों से। कभी नहीं घबरानें वाले।। कोई उन पर जब हँसता है। उनका उपहास उड़ाता है।। दिल उनका छलनी होता है। जब छोटा समझा जाता है।। कुछ भी बातें करनें वाले। गलती उन पर मढ़नें वाले।। अहसास तुम्हें कब होता है। जब उनका दिल भी रोता है।। सम्मान नहीं कर सकते तो, उनका ना तुम अपमान करो। हम सब की गरिमा बनी रहे

उनसे ही रूठे रहतें हैं...

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🌸उनसे ही रूठे रहतें हैं...🌸 जिनके खातिर हम जीतें हैं, जिनके खातिर हम मरते हैं, ना जाने फिर क्या होता है, उनसे ही रूठे रहतें हैं... जिस गोदी में हम खेलें हैं जिस आँचल से हम लिपटें हैं, थोड़े से हम क्या बड़े हुए, ख्यालात पुराने लगतें हैं... जिस आँगन बचपन बीतें हैं जिन गलियों में दिन गुजरें हैं, ऐसी हवा लगी शहरों की, पुराने जमानें लगतें हैं... गाँवों की वो मस्ती टोली, खेले कूदे थे हम जोली, ऐसे उलझे हम अपने मे, सारे अनजानें लगतें हैं... गाँवों के वो बाग-बगीचे, पानी भर-भर हमनें सींचे, जब याद पुरानी आती है, अखियाँ आँसू झलकाती है... जीवन पथ पर जब बढ़ते हैं, पीछे क्या-क्या हम खोतें हैं, आज सुनाने बैठें तो सब, किस्से-कहानियाँ लगतें हैं... जिनके खातिर हम जीतें हैं, जिनके खातिर हम मरते हैं, ना जाने फिर क्या होता है, उनसे ही रूठे रहतें हैं...             केतन साहू "खेतिहर"       बागबाहरा, महासमुंद(छ.ग.)       Mo.no.- 7049646478

श्री गणेशाय नमः....

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🌸श्री गणेशाय नमः🌸 शुक्ल चतुर्थी आ गई, भादो पावन मास। श्री गणेश विराज रहे, छाया नव-उल्लास।। गौरी  के वे  पूत  हैं,  महादेव  के  लाल। थाल सजाएं दीप लें, पुष्प गुच्छ गलमाल।। करें आरती  देव की, गाएं  मंगल  गान। तन मन से सेवा करें, धरें देव का ध्यान।। मंगल  मूरति  देव हैं,  प्रथम  पूज्य  भगवान। आओ हम मिलकर करें,गणपति का गुणगान।। गणपति गणनायक कहें, लंबोदर गणराज। विघ्न विनाशक देव हैं, पूरे  करते काज।। दरिद्रता  दुख दूर  हो, धन  दौलत  भरपूर। दया- दृष्टि जिन पर करें, कष्ट हरे सब दूर।। "खेतिहर" भक्ति-भाव से, धरो देव का ध्यान। कृपा करें निज दास पर, कृपा सिंधु भगवान।।           ✍ केतन साहू "खेतिहर" ✍           बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)             मो.नं.- 7049646478

अगस्त क्रांति का आगाज...

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🔥अगस्त क्रांति का आगाज🔥 आओ रण में अब कूच करें... हम भी अपनी ललकार भरे.. बज उठा देख रण-भेरी है, चलने में अब क्यों देरी है? इक दूजे को कोस रहें हैं, खुद ही हम निर्दोष बनें हैं। क्या हममें कुछ दोष नहीं है शासन के प्रति रोष नहीं है। छोड़ो आपस की बातों को, आओ हिलमिल जयघोष करें। मातृ संगठन ललकार रहा, हम भी अपनी हुंकार भरें।। राह हमारी आसान नहीं, मुश्किल राहों पर चलना है। किसी एक की अब बात नहीं, हम सबको मिलकर लड़ना है।। देखो तो सरकारें कितनी, सत्ता के मद में अब चुर है।। बेबस हो जाती है जनता, जानें क्यों इतनी मजबुर है।। तोड़ मजबुरी की जंजीरें, अब तो बाहर आना होगा।। अब हमको ही आगे बढ़कर, इनको सबक सिखाना होगा।। अब तो हाथों में हाथ लिए, सबको मिलकर चलना होगा।। अंधेरी गलियों पर जैसे, दीपक बनकर जलना होगा।।     केतन साहू "खेतिहर" बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.) Mo.no. 7049646478

अलबेली सी नार...

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सावन का मद मास है, धरती का श्रृंगार। ओढ़ चुनर जैसीं लगे, अलबेली सी नार।। अलबेली उस नार की, कैसे करूँ बखान। कई पतंगे दीप पर, होते हों कुर्बान।। पीत पात सब झड़ गये, हरा भरा उद्यान। मानों कोई अप्सरा, पहनी नव परिधान। पुष्प कली सब खिल गई, भौंरे करते गान। गाल गुलाबी होंठ पर, मंद मंद मुस्कान।। सर-सर-सर बहती पवन, गाती मानों गीत। कल-कल-कल करती नदी, सुना रही संगीत।। इधर-उधर चहुँ ओर है, बलखाती बरसात। घुमड़-घुमड़ कर मेघ भी, बढ़ा रहे जज्बात।। बारिश का मौसम प्रिये, मस्त सुहानी रात। आओ हम मिलकर करें, प्रिये प्रीत की बात।।           केतन साहू "खेतिहर"      बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)        मो. नं.- 7049646478

बदल रहा है देश...

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नवयुग का आरंभ है, नवयुग  का  आगाज। श्री गणेश अब हो रहा, दीप जलाओ आज।। मोदी जी  के  राज  में,  भ्रष्टाचारी  पस्त। उजड़ रहा है घोंसला, समेट ने में व्यस्त।। लुट जाती जागीर भी, गर हो पूत कपूत। दृष्टि-पात निज नेत्र से, है प्रत्यक्ष सबूत।। तेजस्वी  के  नाम से, लालू  जी  मजबूर। छूटी सत्ता हाथ से, चली गयी अति दूर।। देख सपा परिवार में, कुलभूषण अखिलेश। उत्तर प्रदेश छिन गया,  देख  रहा  है  देश।। राहुल के ही नाम से, अस्त-व्यस्त कांग्रेस। मची हुई है खलबली, मचा हुआ है क्लेश।। गौर करो इस दौर पर, बदल रहा परिवेश। बदल रहा परिदृश्य है, बदल रहा है देश।।               केतन साहू "खेतिहर"          बागबाहरा,महासमुंद, (छ.ग.)          Mo.no.- 7049646478

प्राथमिक स्कूल का मैं शिक्षक...

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प्राथमिक स्कूल का मैं शिक्षक,                       वर्ग तीन कहलाता हूँ... नव प्रवेशित बच्चों को,                "अ"अनार-आम पढ़ाता हूँ... शासन के आदेशों का,                 अक्षरशः पालन करता हूँ... एक-एक अक्षर सिखाने हेतु,                  कई-कई बार दोहराता हूँ... प्राथमिक स्कूल का मैं शिक्षक,                      वर्ग तीन कहलाता हूँ... मैं कहता हूँ अनार के "अ",                बच्चे कहते आम के "आ"... मैं कहता हूँ इमली के "इ",                   बच्चे कहते ईख के "ई"... छोटे और बड़े वर्णों का,                     भेद उन्हें समझाता हूँ... प्राथमिक स्कूल का मैं शिक्षक,                      वर्ग तीन कहलाता हूँ... जब बच्चें ऊबने लगतें हैं,                  मैं हँसता औऱ हँसाता हूँ... बच्चों का मन बहलानें,                  हँसी मजाक करवाता हूँ... हँसी मजाक करते करते,               खुद "मजाक" बन जाता हूँ... प्राथमिक स्कूल का मैं शिक्षक,                       वर्ग तीन कहलाता हूँ... बड़े-बड़े अधिकारी गण,  

अजीब दुनियाँ...

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तुम्हारी दुनियाँ भी, कितनी अजीब है... ऐ मेरे मालिक! हम जब रोतें हैं, तो दुनियाँ हम पे, खूब ठहाकें लगातीं हैं... हम जब हँसतें हैं, तो दुनियाँ हमारी हँसी पे, जल-भुन जातीं हैं... शायद! तुमनें हमारे लिए, दुनियाँ ही नहीं बनाई... जो मिलते वो बिछड़ जातें हैं, ये कैसी तेरी खुदाई... शायद! तुम्हारी यही ख्वाहिश है, हमें कुछ भी ना मिले, तुम्हारी इस दुनियाँ से... अगर आप यही चाहतें हैं हमसे, तो हमारी भी जिद है आप से... तुम्हारी इस दुनियाँ से, कुछ भी नहीं माँगेंगे... खाली हाथ आयें हैं, खाली हाथ ही जायेंगे....                       केतन साहू "खेतिहर"                   बागबाहरा, महासमुंद(छ.ग.)                   Mo.no.- 7049646478

दर्द विदाई क्या होता है?

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दर्द-विदाई क्या होता है? कुछ दृश्य देख मैं आया हूँ... अपनी प्यारी बिटिया को कहींं दूर  छोड़  मै आया हूं... पापा की वो प्यारी गुड़िया, मम्मी की  राज दुलारी  है। प्यारी सी दो बिटिया अपनी, छोटी अपनी  फुलवारी है।। आज बगीचे के फूलों को, जी भर देख नहीं पाया हूँ... दर्द-विदाई क्या होता है? कुछ दृश्य देख मैं आया हूँ... मम्मी रोती बिलख-बिलख कर, नन्ही खुशी भी आज दुखी है। ज्यों के त्यों आहार पड़ें है, जाने  कब से वो भूखी है।। अपने भीतर के भावों को, मैं बमुश्किल रोक पाया हूँ... दर्द-विदाई क्या होता है? कुछ दृश्य देख मैं आया हूँ... जिनकी हँसती किलकारी से, गुंजित अपना घर आँगन था। सुन प्यारी-प्यारी बातों को, मन आनंदित हो जाता था।। महकती चहकती गुलशन को, आज अधिक विरान पाया हूँ.... दर्द-विदाई क्या होता है? कुछ दृश्य देख मैं आया हूँ... जहाँ रहो तुम प्यारी गुड़िया, सब खुशियाँ तुम्हारे पास हो।। नित्य-नयी  ऊँचाई  छू  लो, उड़ने को खुला आकाश हो।। फूलों से प्यारी बच्ची को, यही  दुआएं  दे आया हूँ.... दर्द-विदाई क्या होता है? कुछ दृश्य देख मैं आया हूँ...           केत

🌀 अंतर्व्यथा युवा धड़कन की... 🌀

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निकले थे कुछ कर दिखलाने। दुनियाँ को नव-पथ बतलाने।। पढ़-लिख कर कुछ नाम कमाने। जीवन   अपना  सफल  बनाने।। नींदें खोकर के रातों की। विद्या पायी कालेजों की।। हासिल की डिग्री-डिप्लोमा। करवाया   पंजीयन-नामा।। मौका मिल जाये छोटा सा। हमने बस इतना सोंचा था।। मिट जाती  अपनी  बेगारी। गर मिले नौकरी सरकारी।। हम बारम्बार किये अपील। बेगारी की लग गयी सील।। कैसे जीयें  हम  क्या खायें। पीड़ा अपनी किसे बतायें।। अब हालत  तुम्हारे पास है। दुनियाँ अपनी भी उदास है।। आ जाए  नव-हर्ष-उल्लास। प्रेमी-प्यारी की है तलास।। कभी सोचुँ  नेता बन जाऊँ। खुद खाऊँ बस मजे उड़ाऊँ।। कभी सोचुँ  खेतों में  जाऊँ। खेती कर "खेतिहर" कहाऊँ।। इक दिन की मैं क्या बतलाऊँ। समुचा देश  आज  पलटाऊँ।। बड़े  जोश  में   ऐसा   सोंचा। अफसर को धर-पकड़ दबोचा।। उसने कहा अरे!मुर्ख नादान। तुझको थोड़ा भी नहीं ज्ञान।। मुझसे अनभिज्ञ अनजान है। मंत्री तक  जान-पहचान है।। दर्द तुम्हें  कैसे  दिखलायें। व्यथा तुम्हें कैसे बतलायें।। भूल  गया  मैं  सारी  बातें। दिल में ही सिमटी जज्बातें।। अंतर्व्यथा  युवा  ध

☀कोई और नहीं किसान हैं...☀

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ना अपना कोई राज-भवन। ना ही कोई  जमींन-दारी ।। छोटा अपना  गाँव-गली है। छोटी अपनी  खेती-बाड़ी।।           ना  तो  कोई  राज-सिहासन।           ना मस्तक पर सजा ताज है।।           हम तो अपने दिल के  राजा।           उस पर ही हमारा  राज  है।। ना  मंत्री  ना  संत्री  अपने। ना  जगमगाती  दरबार है।। बारिश  की  बुंदे पड़ती तो। अश्रु-धार बहाती दीवार है।।            ना तन पर  रेशमी वस्त्र है।            ना ही  कोई  ताम-झाम है।।            खेतों में कटते  दिन अपने।            कब मिलता हमें विश्राम है।। ना तो कोई गाड़ी  मोटर। ना  सेवक  पहरेदारी  है।। दौड़-भाग लाना ले जाना। सब अपनी जिम्मेदारी है।।             ना तो कोई शानों-शौकत।             ना ही कोई खास-बात है।।             छोटे-छोटे   सपनें   बुनते।             अपने कटते दिनों-रात है।। ना  हमको इनकी चाहत  है। ना ही हम तनिक नाराज हैं।। नव-युग  के  हम नये  नवेले। नव-युग के नव्य आगाज  है।।            खेती   अपनी   जिम्मेदारी।            इसमें  ही  हमारी जान  है।।            अब बोलो क्या पहचान गये।            

विनती सुन लो अब शर्मा जी...

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 📢विनती  सुन लो...📢 विनती सुन लो अब शर्मा जी। तुम जरा उतारो चश्मा जी।। फरियाद तुम्हें सुना  रहें  हैं। पीड़ा  अपनी  बता  रहें  हैं।। खिदमत करते कम वेतन में। कभी-कभी मिलते महिनें में।। हालत  सबकी जान  रहें  हैं। फिर भी क्यों अनजान बनें हैं।। मिडिया मजाक बना रही है। उपहास देख उड़ा  रही  है।। क्यों हमारी  नहीं  सुनतें  हैं। चुप हो क्यों नहीं बोलतें हैं।। क्या तरकस में अब तीर नहीं। बोलो भी क्या तुम वीर नहीं।। तुमसे  आश  लगा  बैठें  हैं। बोलो  क्यों   ऐंठे  बैठें   हैं।। आओ रण में अब कूच  करो। तुम भी अपनी ललकार भरो।। अब तुम ना देर लगाओ जी। हुंकार भरो अब  शर्मा  जी।। विनती सुन लो अब शर्मा जी... तुम जरा उतारो चश्मा जी...        केतन साहू "खेतिहर"    बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)    मो. नं.- 7049646478

मेरे बारे में...

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सम्माननीय,                  पाठक वृंद,                  सादर नमन... आज मैं अपने बारे में कुछ बातें साझा करने जा रहा हूँ। मेरी जन्मस्थली ग्राम सिवनी कलाँ, वि.ख.- कुरुद, जिला-धमतरी (छ.ग.) है। मैं एक सामान्य कृषक परिवार से हूँ। मेरे पिताजी का नाम श्री पंचराम साहू व दादा जी का नाम स्व. श्री फूलजी साहू है। मैनें उच्च प्राथमिक तक की पढ़ाई अपने गृह ग्राम सिवनी कलाँ से की फिर हायर सेकंडरी स्कूल तक की पढ़ाई समीपस्थ ग्राम सिर्री से प्राप्त की। हायर सेकंडरी तक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद मैनें गोवर्मेंट पालिटेक्निक कालेज खिरसाडोह छिंदवाड़ा से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा हासिल किया। खिरसाडोह हास्टल मे बिताये हुए तीन वर्ष मेरे जीवन के यादगार पलों में से एक है।               इसके बाद मेरे जीवन में एक नया मोड़ आया। सन् 1996 मे मेरे पिताजी ने ग्राम भालुचुवाँ, बागबाहरा, जिला-महासमुंद मे लगभग 40 एकड़ जमीन खरीदी और हमें पूरे परिवार सहित जिनमें मेरी माँ व पिताजी के अलावा दो छोटे भाई सामिल थे, अपनी जन्मस्थली व मैदानी परिवेश को छोड़कर एक अनजाने वन्य परिवेश मे आना पड़ा। शुरुआती वर्ष हमारे

☀बचपना☀

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   👶☀बचपना☀👶 रुक जाना हर एक मोड़ पर,                     नादानी है ये बच्चों की। नादानी करते-करते ही,              बीते ना हर पल जीवन की।। नादानी में ही तो बच्चें,               सब हरकतें किया करतें हैं। गर्म दूध को पीकर अपना,             मुँह ही जला लिया करतें हैं।। आतुरता इतनी ठीक नहीं,                  थोड़ी ठंडी आहें भर लो। व्याकुलता इतनी किस कारण,              पूछो परखो मंथन कर लो।। पूछ-परख कर तुम काम करो,           जग में अपना कुछ नाम करो। मात-पिता के अरमानों को,                 ऐसे ना तुम बदनाम करो।। अपनी खूबी मासुमियत को,                  क्यों ऐसे जाया करते हो। अनुपम अनमोल खजाने को,              क्यों व्यर्थ गँवाया करते हो।। पड़ाव पर मत उलझो प्यारे,           मंजिल की ही तुम ध्यान धरो। लक्ष्य तुम्हारा अब दूर नहीं,              तुम राम-बाण संधान करो।। छोटा अपना अरमान नहीं,                 ऊँची सोच रखा करते हैं। अब हम ना कोई बच्चे हैं,                 जो कंचों में खुश रहतें हैं।।             ✍ केतन साहू "खेतिहर"✍            

सुकमा नक्सली हमला...

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💥सुकमा नक्सली हमला💥 फिर से रंग गयी है धरती, नक्सल की खूनी होली से।। घात लगाकर बैठे थे जो, उन नक्सलियों की गोली से।। लाश उठी है जाबाजों की, देखो सुकमा की घाटी से।। चीख उठी है माँ बहनों की, तड़फती बिलखती छाती से।। बहुत हुआ यह खूनी तांडव, अब इनको भी मार गिराओ। तांडव मचा रहे दैत्यों को, अब तुम भी तो धूल चटाओ।। तुम भी मारो हत्यारों को। उन छुपे हुए गद्दारो को।। अब जो भी इनके पोषक है। वे मानवता के शोषक है।। करने को नक्सल उन्मूलन, जो अरबों रुपये पातें हैं।। वो बोले अब इन कुत्तों को, चुन-चुन क्यों नहीं मारतें हैं? देखो तो सरकारें कितनी, सत्ता के मद में अब चुर है।। बेबस हो जाती है जनता, जानें क्यों इतनी मजबुर है।। तोड़ मजबुरी की जंजीरें, अब तो बाहर आना होगा।। अब जनता को आगे बढ़कर, इनको सबक सिखाना होगा।। अब तो हाथों में हाथ लिए, सबको मिलकर चलना होगा।। अंधेरी गलियों पर जैसे, दीपक बनकर जलना होगा।।       ✍ केतन साहू "खेतिहर" ✍       बागबाहरा, महासमुंद(छ.ग.)

☀एक किसान☀

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💥 तांडव नृत्य💥

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अपने पास न तरकस है, न तीर है, न कमान है, सिर्फ एक जूबान है... उसे भी लोग चलाने नहीं देते... घर में श्री मती कहती है, चुप रहो... बाहर दुनिया कहती है, चुप रहो... ऐसे में हम करें तो क्या करें...? जी करता है, किसी पर्वत की, चोंटी पर चढ़ जायें... और भगवान शिव शंकर की तरह, क्यों न तांडव नृत्य दोहरायें...? 😜😀😜😀😜😀😜😀😜😀

🍷☀नशा☀🍷

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कृषक भाई आंदोलित है..

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धरती से अन्न उगाने वाले, हम सबकी क्षुधा मिटाने वाले, ना जानें इतना क्यों क्रोधित है? देख कृषक भाई आंदोलित है.... वसुंधरा को महकाने वाले, जीवन गीत गुन-गुनाने वाले, अब सोचें इतना क्यों शोषित है? देख कृषक भाई आंदोलित है... अपना पसीना बहाने वाले, धरती की प्यास बुझाने वाले, बताओ भी इतना क्यों तृषित है? देख कृषक भाई आंदोलित है... वे भोले-भाले सीधे-सच्चे, भूखे,बेघर क्यों उनके बच्चे? होते नित छलावे से छलित है, देख कृषक भाई आंदोलित है... जो अपनी सत्ता के खातिर ही, उनको भांति-भांति ललचातें हैं, अब वें बोले क्यों व्यर्थ-व्यथित हैं? देख कृषक भाई आंदोलित है... झूठी, फरेबी राज-सत्ता को, मौका परस्त राज-नेतृत्व को, अब खत्म करने को ललायित है, देख कृषक भाई आंदोलित है.... देख दयनीय दशा कृषक जन की, कुछ सुलगते प्रश्न उनके मन की, कलम"खेतिहर"की आज द्रवित है, देख कृषक भाई आंदोलित है... ✍  केतन साहू "खेतिहर" ✍ बागबाहरा, महासमुंद(छ.ग.) Mo.no. 7049646478